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                     अनुभूति 
					में पुष्यमित्र की रचनाएँ—  
					 
					छंदमुक्त में— 
					उदास चेहरे 
                    
                    गाँव की तकदीर 
                    
                    चुंबन की निशानियाँ 
                    
                    पतंगबाज 
                    
                    पर्वत और नदी 
                    
                    सुबहें  
					 
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					गाँव की तकदीर 
					 
					कई तालों में कैद है 
					गाँव की तकदीर 
					बुढ़ाते जा रहे लोगों की ज़िद 
					हार चुके युवाओं की कुंठाएँ 
					खिचड़ी से सड़क तक की ठेकेदारी 
					हथियाने में जुटे तिकड़मी 
					पुराने सौदागर जिन्होंने बदल लिए हैं चेहरे 
					पुराने ठग जो अब बन गए हैं फ्रॉड 
					और नेताजी 
					जिन्होंने थमा दी है बच्चों को बंदूकें। 
					मगर उनकी हँसी 
					छोटे–छोटे बच्चे 
					जो डगमगाते हुए 
					गुँजाते फिरते हैं आँगन–आँगन 
					अपनी किलकारी से। 
					उनकी सलाइयों की खनक 
					जो दिन भर बात करते–करते बुन डालती हैं 
					शॉल स्वेटर टेबल क्लॉथ 
					उनकी चीख 
					जो हर शाट पर चिल्लाते हैं– 
					'आउट दैट!' 
					और वह जिसे समा गई है 
					पुस्तकालय खोलने की धुन। 
					उनकी खिड़कियों में तैरते हैं 
					उम्मीद के सपने। 
					 
					९ मई २००६  |