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६. २. २०१२

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हमको भी आता है

सूरज फिर
से हुआ लाल है

पर्वत के सीने से झरता है झरना
हमको भी आता है भीड़ से
गुजरना

कुछ पत्थर कुछ रोड़े
कुछ हंसों के जोड़े
नींदों के घाट लगे
कब दरियाई घोड़े

मैना की पाँखें हैं बच्चों की आँखें हैं
प्यारी है नींद मगर शर्त है
उबरना

खेतों की मेड़ों से
साखू के पेड़ों से
कुछ ध्वनियाँ आती हैं
नदी के थपेड़ों से

वर्दी में सादे में, बाढ़े के इरादे में
आगे पीछे पानी देख के
उतरना

गूँगी है बहरी है
काठ की गिलहरी है
आड़ में मदरसे हैं
सामने कचहही है

बँधे खुले अंगों से, भरपाया रंगों से
डालों के सेब है, सँभाल के
कुतरना

-देवेन्द्र कुमार

इस सप्ताह

गीतों में-

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देवेन्द्र कुमार

अंजुमन में-

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रोहित कुमार 'हैप्पी'

छंदमुक्त में-

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विनीता जोशी

ताँका में-

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डॉ. जगदीश व्योम

पुनर्पाठ में-

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शरद महोत्सव हाइकु में

पिछले सप्ताह
३० जनवरी २०१२ के अंक में

गीतों में-

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रमेश रंजक

अंजुमन में-

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बसंत ठाकुर

छंदमुक्त में-

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श्रीकांत सक्सेना

हाइकु में-

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ऋता शेखर मधु

पुनर्पाठ में-

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शांति सुमन

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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