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अनुभूति में डॉ. जगदीश व्योम की रचनाएँ—

ताँका में-
माँ (ताँका में)

कविताओं में—
अक्षर
छंद
रात की मुट्ठी
सो गई है मनुजता की संवेदना
हे चिर अव्यय हे चिर नूतन

गीतों में—
आहत युगबोध के
इतने आरोप न थोपो
न जाने क्या होगा
पीपल की छाँव
बाज़ीगर बन गई व्यवस्था
हाइकु नवगीत

दोहों में—
ग्यारह दोहे

हाइकु में-
सात हाइकु

संकलन में—
तुम्हें नमन- किसकी है तस्वीर
नव वर्ष अभिनंदन-– दादी कहती हैं
हिंदी के 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत- पिउ पिउ न पपिहरा बोल

 

माँ (ताँका में)

ताँका जापानी कविता का एक रूप है जिसमें ५ – ७ – ५ – ७ – ७ वर्ण होते हैं


हरी दूब सी
छाया बरगद सी
सदा पावन
माँ कभी रामायण
और कभी गीता सी।


नदी बनती
कभी बनती धूप
कभी बदली
माँ पावन गंगोत्री
जल से भी तरल।


ढल जाती है
घुल मिल जाती है
माँ तो माँ ही है
प्यार का खजाना है
वेदों ने बखाना है।

६ फरवरी २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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