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८. ४. २०१३

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1गीत छौने

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बैठने देते नहीं सुख-चैन से
ये गीत-छौने

आग्रही आर्त
गंध व्यापी घाटियों में खींच ले जाते अचानक
हाथ में दे प्रीति-पोथी बैठ जाते सामने ये
और पढ़वाते कथानक
हम हुए हैं हाथ इनके
चाभियों
वाले खिलौने

खींच लाते विसंगतियाँ
सामने ये और बरबस डाल देते हैं झमेले में
फूटते बम की तरह अंतःकरण में हो भले
ही भीड़ में अथवा अकेले में
हठ पकड़ते फोड़ भांडा
खेल हैं
जिनके घिनौने

शीश पर अपने धरे अमृत-
कलश ये घूमते हैं, अति-अप्रिय इनको कलुष है
दृष्टि में छोटे कभी राजा भगीरथ तो
निशाने पर कभी भोगी नहुष हैं
पोतते कालिख किसी
के मुख
लगाते हैं दिठौने

- मृदुल शर्मा

इस सप्ताह

गीतों में-

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मृदुल शर्मा

अंजुमन में-

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महावीर उत्तरांचली

नई हवा में-

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संदीप रावत

दोहों में-

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रघुविन्द्र यादव

पुनर्पाठ में-

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अनामिका

पिछले सप्ताह
१ अप्रैल २०१३ के अंक में

गीतों में-

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तारादत्त
निर्विरोध

अंजुमन में-

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हस्तीमल हस्ती

छंदमुक्त में-

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सौरभ राय भगीरथ

कुडलिया में-

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जगन्नाथ प्रसाद बघेल

पुनर्पाठ में-

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सरोज भटनागर

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
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