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२३. ६. २०१४

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तस्वीर गाँव की

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बदल गयी तस्वीर गाँव की,
कोई आहट नहीं
पाँव की।

गलियारे लगते हैं सूने,
भाईचारा खत्म हो गया,
हर वस्तु के
दाम दोगुने,
भूख मिटाना सपन हो गया।

मधुरस नहीं रहा भाषा में,
आवाजे हैं काँव-
काँव की।

गाँव हुआ अब शहर-शहर है,
कोठी, बँगले, मॉल बने हैं।
झेल रही है
कहर ग्राम्यता,
कब इनके अब दिन फिरने हैं।

आश्रय का है नहीं ठिकाना,
नहीं रही अब जगह
छाँव की।

बैलों की घण्टी की ध्वनियाँ,
और किसानों की टिटकारी,
कहाँ गयी
प्यारी मुनियाँ की,
मधुर-मधुर सी वो किलकारी।

लुप्त हो गया जो नव-युग में,
खोज करूँ मैं उसी
ठाँव की।

- पवन प्रताप सिंह पवन

इस सप्ताह

गीतों में-

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पवन प्रताप सिंह पवन

अंजुमन में-

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अनिल कुमार जैन

छंदमुक्त में-

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स्वर्णलता ठन्ना

छोटी कविताओं में-

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डॉ. शैलेष गुप्त वीर

पुनर्पाठ में-

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निशांत कुमार

पिछले सप्ताह
१६ जून २०१४ के अंक में

गीतों में- अनंत कुशवाहा, अश्विनी कुमार विष्णु, आशीष तिवारी, कर्ण बहादुर, कृष्ण नंदन मौर्य, डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. प्रदीप शुक्ल, डॉ. मधु प्रधान, डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', देवेन्द्र प्रसाद पांडेय, नरेश मेहता, निर्मल शुक्ल, पवन प्रताप सिंह 'पवन', बृजेश नीरज, बटुक चतुर्वेदी, रविशंकर मिश्र रवि, रामशंकर वर्मा, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, शशि पाधा, शशि पुरवार, सीमा अग्रवाल, सुवर्णा दीक्षित, सौरभ पांडेय, त्रिलोक सिंह ठकुरेला। छंदमुक्त में- आनंद मूर्ति, आभा खरे, आलोक श्रीवास्तव, परमेश्वर फुँकवाल, मंजुल भटनागर, राहुल देव, सरस्वती माथुर, सिया सचदेव। छंदों में- कमलेश भट्ट कमल (दोहे), ज्योतिर्मयी पंत (दोहे), डॉ. प्राची सिंह (कुंडलिया), धर्मेन्द्र मणि त्रिपाठी (दोहे), धमयंत्र चौहान (दोहे), सुबोध श्रीवास्तव (दोहे), क्षणिकाएँ (संकलित), हाइकु (संकलित)। अंजुमन में-अरुण शर्मा अनंत, कल्पना रामानी, सीमा हरि शर्मा, सुरेन्द्रपाल वैद्य, हरि वल्लभ शर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी
   
 

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