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३. ११. २०१४-

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चूहा झाँक रहा हाँडी में

     

चूहा झाँक रहा
हाँडी में, लेकिन पाई सिर्फ हताशा

मेहनतकश के हाथ हमेशा
रहते हैं क्यों खाली-खाली
मोटी तोंदों के महलों में
क्यों बसंत लाता खुशहाली

ऊँची कुर्सीवाले
पाते अपने मुँह में सदा बताशा

भरी तिजोरी फिर भी भूखे
वैभवशाली आश्रमवाले
मुँह में राम बगल में छूरी
धवल वसन अंतर्मन काले

करा रहा या
'सलिल' कर रहा ऊपरवाला मुफ्त तमाशा

अँधियारे से सूरज उगता
सूरज दे जाता अँधियारा
गीत बुन रहे हैं सन्नाटा,
सन्नाटा हँस गीत गुँजाता

ऊँच-नीच में
पलता नाता तोल तराजू तोला-माशा

- संजीव सलिल

इस सप्ताह

गीतों में-

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संजीव सलिल

अंजुमन में-

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अशोक रावत

छंदमुक्त में-

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नीरज कुमार नीर

कुंडलिया में-

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रामशंकर वर्मा

पुनर्पाठ में-

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रोली त्रिपाठी



 

पिछले सप्ताह
 २७ अक्तूबर २०१४ के अंक में

गीतों में-
जय चक्रवर्ती

अंजुमन में-
कमला सिंह ज़ीनत

छंदमुक्त में-
अमरेन्द्र सुमन

माहिया में-
ज्योतिर्मयी पंत

पुनर्पाठ में-
रोहिणी कुमार भादानी


 

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी