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शुभ सगुनों की माला ले कर
कार्तिक है आया
लौट गई वर्षा मतवाली
एक किये जल-थल
किन्तु सींच न पाई उसको
प्यासा मन मरुथल
नागफनी के फूल खिले
बस मन को भरमाया
कहीं उमग परवान चढ़ रहे
अलसाये सपने
बुला रहे हैं परदेसी को
घर आओ अपने
धुले-धुले से आसमान पर
चन्दा मुस्काया
खिले काँस के फूल नदी
सिमटी तट पर आई
ढूँढ़ रही है कहीं मीत को
महकी तरुणाई
चकई-चकवा ने फिर से
गीतों को दुहराया
- मधु प्रधान |