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  बादल,तितली, धूप

बादल, तितली, धूप, घास, पुरवाई में
किसका चेहरा है इनकी रानाई में?

तुम तो कहते थे हर रिश्ता टूट चुका!
फ़िर क्यों रोए रातों को तन्हाई में?

वो साहिल की रेत देख कर लौट गया,
काश! उतरता दरिया की गहराई में।

पत्थर इतने आए लहूलुहान हुई,
ज़ख्मी कोयल क्या कूके अमराई में!

दिल और आँखें दोनों ही भर आते हैं
किसने इतना दर्द भरा शहनाई में?

१५ जून २००९

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