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सिमटने की हकीकत

 

 

  सिमटने की हक़ीक़त

सिमटने की हक़ीक़त साथ में विस्तार का सपना,
खुली आँखों से सब देखा किए बाज़ार का सपना।

समंदर के अंधेरों में हुईं गुम कश्तियाँ कितनी,
मगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।

थकूँ तो झाँकता हूँ उधमी बच्चों की आँखों में,
वहाँ ज़िंदा है अब तक ज़िन्दगी का, प्यार का सपना।

जो रोटी के झमेलों से मिली फ़ुरसत तो देखेंगे
किसी दिन हम भी ज़ुल्फ़ों का, लब-ओ-रुख़सार का सपना।

जुनूं है, जोश है, या हौसला है; क्या कहें इसको!
थके-माँदे कदम और आँख में रफ़्तार का सपना।

८ दिसंबर २००८

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