अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अमित खरे की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
एकतरफा
गांधारी
प्यार
विषकन्या
संबन्ध
 




 

 

विषकन्या

ये बहुत धीरे धीरे होता है
थोड़ी थोड़ी मात्रा में रोज देना होता है
ज़हर वर्षों तक
एक निश्चित अनुपात में
एक निश्चित लय से
बढ़ाते हुए मात्रा और सांद्रता
साधना की तरह कुछ कुछ
साथ ही साथ तैयार करना होता है
सौंदर्य, कला और आचार-व्यवहार को भी
विषकन्याएँ
कोई रातों-रात तो नहीं बनतीं।

सत्य ये भी है किंतु
कि वापस जाने के सारे मार्ग
बंद होते जाते हैं इस यात्रा में
और क्या मूल्य अर्जित कर पातीं हैं
वे जीवन में
अंततः रह जातीं हैं बन के कठपुतली
किसी की महत्वाकांक्षा की
काठ की हाँड़ी की तरह
जीवन में बस एक बार
इस्तेमाल होने के लिये।

विषकन्याएँ
फिर उम्र भर इस अभिशाप को सहती हैं
उस समाज की तरह
जो अपनी घृणा को हथियार बना कर
किसी सभ्यता को खत्म करने की
किसी वर्ग की महत्वाकांक्षा का
औजार बने
जिसे तैयार किया गया हो किसी विषकन्या की तरह
जहर भरे विचारों और भावनाओं के द्वारा
एक युग तक धीरे-धीरे
और अंततः ख़ुद अकेला रह जाए
अपने सारे पछतावे और प्रायश्चित के साथ।

१ जुलाई २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter