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अनुभूति में अनिल कुमार जैन की रचनाएँ-

अंजुमन में-
किताबें
गर्दिश में वो कोसों दूर
जख्म खाकर मुसकुराना
ज्वालामुखी तो चुप है
थक गया हूँ मैं बहुत
लड़कियाँ

 

 

किताबें

जीने की नई राह दिखाती हैं किताबें
इन्सान को इन्सान बनातीं हैं किताबें

बगदाद, कभी रोम या जापान घुमातीं
दुनिया की हमें सैर कराती हैं किताबें

हर ज्ञान की, विज्ञान की दौलत का ख़ज़ाना
बिन भेद यहाँ सब पे लुटाती हैं किताबें

साथी हैं अकेले की, वफ़ादार हैं सच्ची
अच्छा है, बुरा क्या है, बताती हैं किताबें

कहने को तज्रबात की, अहसास की बातें
ख़ामोश ज़ुबानों से बुलातीं हैं किताबें

तन्हाई में इन्सान के जज़्बात को छूकर
इन्साँ को हँसातीं हैं, रुलाती हैं किताबें

किरदार ये दादी का, कभी माँ का निभातीं
अफसाने, कभी गीत सुनाती हैं किताबें

सुख-दुख के हैं किस्से तो कहीं इल्मो-हुनर है
जीवन के कई रंग दिखाती हैं किताबें

जीवन में कभी साथ किताबों का न छूटे
हर रोज़ नई बात सिखाती हैं किताबें

दुनिया भी किताबों की ‘अनिल’ कितनी हसीं है
दिखला के कई रूप लुभाती हैं किताबें

२३ जून २०१४

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