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अनुभूति में अनिल कुमार जैन की रचनाएँ-

अंजुमन में-
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गर्दिश में वो कोसों दूर
जख्म खाकर मुसकुराना
ज्वालामुखी तो चुप है
थक गया हूँ मैं बहुत
लड़कियाँ

 

  जख़्म खाकर मुस्कुराना

जख़्म खाकर मुस्कुराना, किस के वश की बात है
अपने दुख को भूल जाना किसके वश की बात है

छोड़कर सारे सुखों को अब पराई आग में
अपने हाथों को जलाना, किसके वश की बात है

है बहुत आसान मौजों का तमाशा देखना,
गहरे पानी पैठ जाना, किसके वश की बात है

हिल गए कुछ पेड़ जड़ से, कुछ ज़मीं पर गिर गए
आँधियों को रोक पाना किसके वश की बात है

सिर्फ वो है जिसके आगे जोर कुछ चलता नहीं
बारहा हमको सताना, किसके वश की बात है

कालिखों की कोठरी में, जाके रहने पर ‘अनिल’
साफ़ दामन को बचाना किसके वश की बात है

२३ जून २०१४

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