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अनुभूति में अशोक अंजुम की रचनाएँ

नए दोहे-
घुटी घुटी सी कोठरी

दोहों में-
पानी नदिया प्यास

अंजुमन में-
आँसू
गोली की मेहरबानी
धमकियाँ हैं
वो मुझको आँख भरकर
सयानी बिटिया

 

 

घुटी घुटी सी कोठरी

घुटी घुटी सी कोठरी, नहीं हवा का नाम
नई बहू का जेठ ने, जीना किया हराम

घर के भीतर आग है, घर के बाहर आग
है अंजुम चारों तरफ यही आग का राग

बड़ी तपिश यों हो रहे जीव सभी बेचैन
ऐसे में हड़ताल पर, घर का टेबल फैन

थकी थकी सी बावड़ी, सूखे सूखे घाट
राम बुझाओ प्यास को, जोह रहे हैं बाट

ताल नदी सबको लगा अबके सूखा रोग
दवा कीजिए वैद्य जी, परेशान हैं लोग

पत्ता तक हिलता नहीं, पेड़ खड़े हैं मौन
समाधिस्थ हैं संत जी, इन्हें जगाए कौन

खड़ी जेठ के आँगना नदिया माँगे नीर
दुःशासन सी है तपन, खींच रही है चीर

मिनरल वाटर बेचते सेठ करोड़ीलाल
गंगाबाई खोजती पानी वाला ताल

पानी पानी हो ही चौपायों की चीख
चारे का संकट मिटे चारा रहा न दीख

सूरज लगता माफ़िया हफ़्ता रही वसूल
नदिया काँपे ओढ़कर तन पर तपती धूल

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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