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अनुभूति में बल्ली सिंह चीमा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब तो फिर
धूप से सर्दियों में

रोटी माँग रहे लोगों से
ले मशालें चल पड़े हैं
साज़िश में वो ख़ुद शामिल हो

 

अब तो फिर
 

अब तो फिर कहने लगी हैं राजनीतिक आँधियाँ
हर नगर सुन्दर बनाया है गिरा कर बस्तियाँ

आज शायद शहर में आया है कोई रहनुमा,
हर तरफ़ छाई हुई हैं वरदियाँ ही वरदियाँ

जब से गाँवों में इधर सूखा पड़ा है, दोस्तो !
क्यों उधर शहरों में जा कर बरसती हैं बदलियाँ

सच है रिश्वत के सिवा कुछ और वो खाता नहीं,
शाम ढलते ही पकड़ता है बराबर मछलियाँ

रोशनी करने की ख़ातिर जो जले थे एक दिन,
जल रहा है उन चराग़ों से अभी तक आशियाँ

आजकल है तू भी चुप औ’ मैं भी कुछ ख़ामोश हूँ,
किस तरह की दुश्मनी है तेरे मेरे दरमियाँ 

२४ सितंबर २०१२

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