अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में बल्ली सिंह चीमा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब तो फिर
धूप से सर्दियों में

रोटी माँग रहे लोगों से
ले मशालें चल पड़े हैं
साज़िश में वो ख़ुद शामिल हो

 

धूप से सर्दियों में

धूप से सर्दियों में ख़फ़ा कौन है ?
उन दरख़्तों के नीचे खड़ा कौन है ?

बह रही हो जहाँ कूलरों की हवा,
पीपलों को वहाँ पूछता कौन है ?

तेरी जुल्फ़ों तले बैठकर यूँ लगा,
अब दरख़्तों तले बैठता कौन है ?

आप जैसा हँसी हमसफ़र हो अगर,
जा रहे हैं कहाँ सोचता कौन है ?

रात कैसे कटी और कहाँ पर कटी,
अजनबी शहर में पूछता कौन है ?

आप भी बावफ़ा ’बल्ली’ भी बेगुनाह,
सारे किस्से में फिर बेगुनाह कौन है ?

२४ सितंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter