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अनुभूति में बल्ली सिंह चीमा की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब तो फिर
धूप से सर्दियों में

रोटी माँग रहे लोगों से
ले मशालें चल पड़े हैं
साज़िश में वो ख़ुद शामिल हो

 

रोटी माँग रहे लोगों से

रोटी माँग रहे लोगों से, किसको ख़तरा होता है
यार, सुना है लाठी-चारज, हलका-हलका होता है

सिर फोड़ें या टाँगें तोड़ें, ये कानून के रखवाले,
देख रहे हैं दर्द कहाँ पर, किसको कितना होता है

बातों-बातों में हम लोगों को वो दब कुछ देते हैं,
दिल्ली जा कर देख लो कोई रोज़ तमाशा होता है

हम समझे थे इस दुनिया में दौलत बहरी होती है,
हमको ये मालूम न था कानून भी बहरा होता है

कड़वे शब्दों की हथियारों से होती है मार बुरी,
सीधे दिल पर लग जाए तो ज़ख़्म भी गहरा होता है

२४ सितंबर २०१२

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