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अनुभूति में बसंत ठाकुर की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अमन चाहिये
आते जाते

जबसे गिरी है छत
दिखाई देता है

अंजुमन में-
अब इस तरह
इंसानियत का पाठ
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कातिलों को ये कैसी सजा
कोई छोटा न कोई बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
जाते हुए भी उसने

सुनामी से होता कहर

 

दिखाई देता है

कभी जो क्रोध में अम्बर दिखाई देता है
जमीं पे दर्द का मंज़र दिखाई देता है

कहीं पे बूँद भी पानी की मयस्सर न हुई
यहाँ तो देखो समुन्दर दिखाई देता है

लगा के राम का चेहरा जो जप रहे माला
बगल में देख लो खंजर दिखाई देता है

बनालो शीश महल जो सलाह देके गया
उसी के हाथ में पत्थर दिखाई देता है

दुआओं का है असर या करिश्मा कुदरत का
कहीं पानी कहीं बंजर दिखाई देता है

जहाँ में ढूँढते हो क्यों खुदा को तुम यारों
खुदा तो आपके अंदर दिखाई देता है 

३१ मार्च २०१४

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