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अमन चाहिये
आते जाते

जबसे गिरी है छत
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अब इस तरह
इंसानियत का पाठ
एहसास के पलों को
ऐ जिंदगी
ऐ खुदा बंदे को कुछ ऐसी
कातिलों को ये कैसी सजा
कोई छोटा न कोई बड़ा आदमी
ख्वाब आता है
जाते हुए भी उसने

सुनामी से होता कहर

 

जबसे गिरी है छत

जबसे गिरी है छत मेरे कच्चे मकान की
आने लगी हैं बारिशें सारे जहान की

देखा जो परिंदों ने शिकारी के जाल को
जाने कहाँ से आ गयी ताकत उड़ान की

कहना तो चाहता है परिंदा कुछ आप से
समझोगे बात किस तरह उस बेजुबान की

जब से गया है चाँद पर एक आदमी क्या साथ
बढ़ने लगी हैं मुश्किलें भी आसमान की

उठने लगी हों जब दिलों के बीच में दिवार
कैसे बचेगी आबरू अब खानदान की

३१ मार्च २०१४
 

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