अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. दामोदर खडसे की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कवच
कोरे शब्द
स्मृतियों की रेत
साथ साथ

 

कोरे शब्द

कविता की मुँह दिखाई पर
निकल पड़ते हैं-
शब्द कोरे-करारे...
कविता के दिखते ही
पा जाते हैं अर्थ अन्यान्य
फिर वे शब्द
मेरे नहीं रह पाते...
कभी-कभी
केवल ध्वनियों पर सवार
कंठ के महामार्ग से शब्द
हँसी में भी पिरो देते हैं सार्थकता
उच्चारण के लिए नहीं होते मोहताज वे
आँखों से भी हो जाते हैं बयान
अँगुलियाँ तक बोलने लग जाती हैं
पैरों के अँगूठे उस तरह
उकेरते नहीं होंगे जमीन पर
शब्दों को खूब समझते हैं अब भी वे
शब्द,
कविता की मुँह दिखाई पर
अपने हजार प्रतिबिंबों को देखकर
दाँतों तले अँगुली दबाते हैं-
जब हो कोई
कविता के केन्द्र में
शब्द प्रदक्षिणा का कोश बन जाते हैं।

६ जनवरी २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter