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अनुभूति में डॉ. दामोदर खडसे की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कवच
कोरे शब्द
स्मृतियों की रेत
साथ साथ

 

स्मृतियों की रेत

समय को पार करते हुए
कई मोड़ अपना लेते हैं हमें
मोड़ चाहते नहीं कि ठहर जाए
कोई
समय की गति से बाहर
शायद इसीलिए
जिंदगी का कारवाँ
मिलने और विदा के बीच
निरंतर चलता रहता है !
इस गन्तव्य में
घनी छाया मिलती है अनायास
जहाँ रुककर
सुस्ता लेता है आदमी
घिर आते हैं अचल वृक्ष भी
आसपास
मौसम वृक्षों को देते हैं सबकुछ
राही पल भर प्राणवायु लेता है
कारवाँ चल पड़ता है
समय ठहरता नहीं
पर पदचिन्ह
रह जाते हैं स्मृतियों की रेत में !

६ जनवरी २०१४

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