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अनुभूति में गिरेन्द्र सिंह भदौरिया प्राण की रचनाएँ -

अंजुमन-
आग तो पी गया
पी गया वह पीर
ले चलता हूँ मैं
लेने लगीं अँगड़ाइयाँ
सपना था

 

लेने लगी अँगड़ाइयाँ

धूप जब लेने लगी अँगड़ाइयाँ
कद बदलने लग गईं परछाइयाँ

नफरतों के बीज फिर  बोए गए
सामने आने लगीं सच्चाइयाँ

दोस्ती में घुस गई शक की सुई 
तो सदा बढ़ती रहेंगी खाइयाँ

थक गया सूरज असर कुछ यूँ हुआ
रात की हल हो उठी कठिनाइयाँ

गेंद सा गेंदा ग़ज़ब गदरा गया
देखकर बौरा उठीं अमराइयाँ

धूप का रँग रूप पर चढ़ने लगा
"प्राण"को खलने लगीं तनहाइयाँ

१ अप्रैल २०२३

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