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अनुभूति में कमलेश द्विवेदी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपनी खुशियाँ हम बाँटेंगे
आज नहीं तो कल
किसने हिम्मत हारी है
हर युग में वनवास

 

हर युग में वनवास

हर युग में वनवास राम को सहना पड़ता है
और सिया को भी पावक में दहना पड़ता है।

ध्रुव की तरह साधना करके देखे तो कोई
प्रभु को उसका हाथ एक दिन गहना पड़ता है।

हरिश्चंद्र बन जाना इतना सरल नहीं होता
राजा को भी सेवक बनकर रहना पड़ता है।

वो चाहे दुर्योधन का हो या रावण का हो
अंहकार के पर्वत को तो ढहना पड़ता है।

एक भागीरथ चाहे तो फिर गंगा जी को भी
स्वर्ग छोड़कर इस धरती पर बहना पड़ता है।

प्रिय के मन में क्या है प्रियतम स्वयं समझ लेता
क्या राधा को मोहन से कुछ कहना पड़ता है।

१८ फरवरी २०१३

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