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अनुभूति में खुर्शीद खैराड़ी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपना गाँव
खेतों के दरके सीने पर
गम की गठरी को जीवन भर
दिल्ली के दावेदारों
बरसाती रातों का गम
भोर हुई

हमारी भूख को

 

भोर हुई

पंख परेवों ने खोले नव भोर हुई
भजनों सा चहका फिर खगरव भोर हुई

शबनम झाड़ी ली अँगड़ाई किसलय ने
बाग बगीचों में है उत्सव भोर हुई

मंदिर की घंटी से और अजानों से
सुप्त धरा का टूटा नीरव भोर हुई

धूप गुलाबी उबटन सी कण कण पर है
निखरा फिर धरती का वैभव भोर हुई

अखबारों के पन्नों में जागी दुनिया
गर्म चाय का पीकर आसव भोर हुई

दिन भी गुजरेगा ही रात कटी जैसे
नाम तुम्हारा लेकर राघव भोर हुई

जब ‘खुरशीद’ जिगर तुमने अपना फूँका
जाकर रात ढली तब संभव भोर हुई

२२ दिसंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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