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अनुभूति में खुर्शीद खैराड़ी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपना गाँव
खेतों के दरके सीने पर
गम की गठरी को जीवन भर
दिल्ली के दावेदारों
बरसाती रातों का गम
भोर हुई

हमारी भूख को
 

 

खेतों के दरके सीने पर

खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा
होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा

बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा

भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी
मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा

दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की
प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा

छप्पन भोगों के लालच में क्यों पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में चावल बनकर आ रामा

सूख चुके हैं बरगद-पीपल मानवता ओ करुणा के
मन की बंजर धरती पर नव कोपल बनकर आ रामा

चूता छप्पर सर पर कर्जा तिस पर बड़की का गौना
है अंबार समस्याओं का हल बनकर तू आ रामा

धनवानों को झुकती दुनिया बलवानों से डरता जग
निर्धन का धन बनकर निर्बल का बल बनकर आ रामा

इस जीवन में तो ‘खुरशीद’ बड़ा खल कामी है राघव
पिछले जन्मों के सत्कर्मों का फल बनकर आ रामा

२२ दिसंबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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