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अनुभूति में खुर्शीद खैराड़ी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपना गाँव
खेतों के दरके सीने पर
गम की गठरी को जीवन भर
दिल्ली के दावेदारों
बरसाती रातों का गम
भोर हुई

हमारी भूख को

 

गम की गठरी को जीवन भर

गम की गठरी को जीवन भर यों ही ढोना है
बाहर हँसते रहना भीतर भीतर रोना है

फिक्र लिए उठना रोजाना दिन भर अकुलाना
चिंताओं को सिरहाने में रखकर सोना है

शर्बत जैसा मीठा होगा जीवन का हर पल
इक दूजे में घुलकर हमको समरस होना है

बड़े जतन से साँसों की इस कच्ची डोरी में
दिन गिन गिन कर जीवन का यह हार पिरोना है

सदियों से जिसमें उलझे हैं गाँवों के पंछी
भूख-ग़रीबी-करज़े का यह जाल तिकोना है

भेद खुला है अब जाकर खारे क्यों हैं आँसू
आँखों के दरिया में उसका रूप सलोना है

किसके पीछे भाग रहें हैं सब आँखें मींचे
इन लोगों पर किस ठगनी का जादू टोना है

२२ दिसंबर २०१४

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