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अनुभूति में लोकेश नदीश की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
गिर रही है आँख से शबनम
जलते हैं दिल के ज़ख्म
ये तेरी जुस्तजू से
यों भी दर्दे गैर
यों मुसलसल जिंदगी से

अंजुमन में-
कड़ी है धूप
खोया है कितना

गजल कहू
दिल की हर बात
दिल मेरा
प्यार हमने किया
बिखरी शाम सिसकता मौसम
मुझको मिले हैं ज़ख्म
रखता नहीं है निस्बतें
वफ़ा का फिर सिला धोखा

  वफा का फिर सिला धोखा

वफ़ा का फिर सिला धोखा रहा है
बस अपना तो यही किस्सा रहा है

उन्ही जालों में खुद ही फंस गया अब
जिन्हें रिश्तों से दिल बुनता रहा है

समेटूं जीस्त के सपने नज़र में
मेरा अस्तित्व तो बिखरा रहा है

बुझी आँखों में जुगनू टिमटिमाये
कोई भूला हुआ याद आ रहा है

ख्यालों में तेरे खोया है इतना
नदीश हर भीड़ में तनहा रहा है

७ मई २०१२

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