अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में 'साग़र' पालमपुरी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ
अपनी फ़ितरत
किस को है मालूम न जाने
खोये-खोये-से हो
ज़ेह्न अपना
सोच के ये निकले

अंजुमन में-
कहाँ चला गया बचपन
चिड़ियों के घोसले
जिसको पाना है
बेसहारों के मददगार
रात कट जाए
वो बस के मेरे दिल में भी

  खोये-खोये-से हो

खोये-खोये-से हो हुआ क्या है?
कुछ बताओ ये माजरा क्या है?

भूल कर ख़ुद को भी नहीं चाहा
ये बताओ मेरी ख़ता क्या है?

जाए परदेस कोई फिर ये कहे
अजनबी क्या है, आशना क्या है

नाम लेते हैं तेरा जीने को
और फ़क़ीरों का आसरा क्या है?

दिल लगाते किसी से तो कहते
बेवफ़ाई है क्या वफ़ा क्या है

आदमीयत के जो पुजारी हैं
वो नहीं जानते ख़ुदा क्या है

पूछ लो प्यार करने वालों से
प्यार के जुर्म की सज़ा क्या है?

ग़म ज़ियादा हैं कम ख़ुशी 'साग़र'!
और इस बज़्म में धरा क्या है?

३ नवंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter