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अनुभूति में 'साग़र' पालमपुरी की रचनाएँ-

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अपनी फ़ितरत
किस को है मालूम न जाने
खोये-खोये-से हो
ज़ेह्न अपना
सोच के ये निकले

अंजुमन में-
कहाँ चला गया बचपन
चिड़ियों के घोसले
जिसको पाना है
बेसहारों के मददगार
रात कट जाए
वो बस के मेरे दिल में भी

  सोच के ये निकले

सोच के ये निकले हम घर से
आज मिलेंगे उस दिलबर से

काँटे चुनते उम्र गुज़ारी
हमने उसकी राहगुज़र से

कैसे बच पाता बेचारा
दिल का पंछी तीर-ए-नज़र से

मौसम था रंगीन मगर हम
निकल न पाये शाम-ओ-सहर से

कह ही देंगे उनसे दिल की
काश! वो गुज़रें आज इधर से

प्यासी धरती जिसको चाहे
वो बादल सहरा पर बरसे

'साग़र'! ग़ज़ल सुनाओ ऐसी
लिक्खी हो जो ख़ून-ए-जिगर से.

३ नवंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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