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अनुभूति में मयंक अवस्थी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे

अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर

भाव महफिल में
हवाओं के रुख

 

इक चाँद तीरगी में

इक चाँद तीरगी में समर रोशनी का था
फिर भेद खुल गया वो भँवर रोशनी का था

सूरज पे तूने आँख तरेरी थी, याद कर
बीनाइयों पे पुर जो असर रोशनी का था

सब चाँदनी किसी की इनायत थी चाँद पर
उस दाग़दार शै पे कवर रोशनी का था

मग़रिब की मदभरी हुई रातों में खो गया
इस घर में कोई लक़ते-जि़गर रोशनी का था

दरिया में उसने डूब के कर ली है खुदखुशी
जिस शै का आसमाँ पे सफर रोशनी का था

जर्रे को आफताब बनाया था हमने और
धरती पे कहर शामो-सहर रोशनी का था

१ नवंबर २०१७

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