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अनुभूति में मयंक अवस्थी की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
इक चाँद तीरगी में
इसी खातिर
बैठे हो जिसके खौफ़ से छुपकर
मेरे आगे

अंजुमन में-
कभी यकीन की दुनिया में
खुशफहमियों में चूर

भाव महफिल में
हवाओं के रुख

 

खुशफहमियों में चूर

खुशफहमियों में चूर, अदाओं के साथ –साथ
भुनगे भी उड़ रहे हैं हवाओं के साथ –साथ

पंडित के पास वेद लिये मौलवी क़ुरान
बीमारियाँ लगी हैं दवाओं के साथ –साथ

वो ज़िन्दगी थी इसलिये हमने निभा दिया
उस बेवफा का संग वफ़ाओं के साथ –साथ

इस हादसों के शहर में सबकी निगाह में
खामोशियाँ बसी हैं सदाओं के साथ –साथ

उड़ती है आज सर पे वही रास्ते की धूल
जो कल थी रहग़ुज़ार में पाँओं के साथ –साथ

जज़बात खो गये मेरे आँसू भी सो गये
बच्चों को नींद आ गयी माँओ के साथ-साथ

२ जनवरी २०१२

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