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अनुभूति में पं. विद्यारतन 'आसी'
की रचनाएँ—

अंजुमन में—
क्या मालूम
कौन है
तेरी शफ़कत
रास्ता
राह नहीं थी इतनी मुश्किल

 

राह नहीं थी इतनी मुश्किल

राह नहीं थी इतनी मुश्किल।.
खा गई हमको दूरिए मंज़िल।

झूठी आस के रसियाओं को
जीना भी मरना भी मुश्किल।

किस–किस को मुजरिम ठहराएँ
कौन नहीं है अपना क़ातिल।

वादा करना और निभाना
कितना आसां कितना मुश्किल।

दुनिया का दस्तूर न पूछो
आप ही मुन्सिफ़ आप ही क़ातिल।

'आसी' जब डूबे तो जाना
दरिया–दरिया साहिल–साहिल।

१६ मार्च २००६

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