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अनुभूति में डॉ. ऋषिपाल धीमान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
क्यों फ़ासिले
खुले ही रहते थे
तुमने छुआ था
मुझको रोके थी अना
लग रहा है

समझेगा कोई कैसे

कविताओं में-
होली चली गई

  मुझको रोके थी अना

मुझको रोके थी अना और यार कुछ मगऱूर था
जिस्म से था सामने लेकिन वो दिल से दूर था।

मैं मदद के वास्ते नाहक वहाँ चीखा किया
घर पड़ौसी के न जाने का जहाँ दस्तूर था।

हाथ मेरे दोस्तो इस जुर्म में काटे गए
ताज के कारीगरों में मैं भी इक मजदूर था।

हाथ में सैयाद के मैं क्यों नहीं आता भला
पंख थे ज़ख्मी मेरे और मैं थकन से चूर था।

क्यों मुझे मिलती तरक्की आज के माहौल में
सर झुकाना दुम हिलाना कुछ नहीं मंजूर था।

९ जुलाई २००६  

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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