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अनुभूति में सिया सचदेव की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
काम कुछ ऐसा न कर जाऊँ
ज़िंदगी इस तरह
तजुर्बो ने ये सिखाया है
मैं हिफाज़त से

 

काम कुछ ऐसा न कर जाऊँ

काम कुछ ऐसा न कर जाऊँ ये डर लगता है
दिल से तेरे न उतर जाऊँ ये डर लगता है

फासले मुझको हैं मंज़ूर मगर ऐ हमदम
जीते जी खुद ही न मर जाऊँ ये डर लगता हैं

बड़ी मुश्किल से संभाला है दिल-ए-नादाँ को
अब कहीं फिर न बिखर जाऊँ ये डर लगता है

सकूं नसीब है जब तक तुम्हारे साथ हूँ मैं
बिछड़ के तुझसे किधर जाऊ ये डर लगता है

ऐ सिया दीद का वादा जो किया है मैंने
देख के उसको न मर जाऊँ यह डर लगता

२६ सितंबर २०११

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