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अनुभूति में सिया सचदेव की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
काम कुछ ऐसा न कर जाऊँ
ज़िंदगी इस तरह
तजुर्बो ने ये सिखाया है
मैं हिफाज़त से

 

मैं हिफ़ाज़त से

मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में तेरा ग़म रखती हूँ।

मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।

हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखा दूँ मैं जो दम रखती हूँ।

मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ

है तेरा प्यार इबादत मेरी पूजा मेरी
नाम ले कर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।

दोस्तों से न गिला है न शिकायत है "सिया"
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ

२६ सितंबर २०११

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