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अनुभूति में सोनरूपा विशाल की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपनी ये पहचान
ज़रूरी है
पिता
माँ
सुब्ह फूलों से रात तारों से



 

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सुब्ह फूलों से रात तारों से

सुब्ह फूलों से रात तारों से
ज़िन्दगी है इन्हीं नज़ारों से

शोर से चुप्पियाँ कहीं बेहतर
बात कीजे, मगर इशारों से

मुक्त होती तो और कुछ होती
ये नदी है तो है किनारों से

अब मैं खुद पर यकीन करती हूँ
दूर रहती हूँ अब सहारों से

हर कोई चाँद से है बावस्ता
किसको निस्बत रही सितारों से?

अब के जो आएँ तो न जाएँ कभी
ये गुज़ारिश है फिर बहारों से

१५ जुलाई २०१६

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