अनुभूति में
वीरेन्द्र कुँवर
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
पत्थरों को फूल लिक्खूँ
ये माना बिन खुशामद
वहाँ अधिकार की बातों की चर्चा
हाथ से
मुंसिफ के |
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पत्थरों को फूल
लिक्खूँ
पत्थरों को फूल लिक्खूँ फूल को
पत्थर लिखूँ
मैं स्वयं से पूँछता हूँ खुद को क्या शायर लिखूँ।
हर तरफ आँसू, उदासी हर तरफ नफरत की आग
जिंदगी को किस तरह आनंद का सागर लिखूँ।
दूसरों के वास्ते जो खुद ही पीते हैं जहर
दिल ये कहता है कि उनको वक्त का शंकर लिखूँ।
थाल के बैंगन सरीखे लोग भी यह चाहते
नाम उनका बावसूलों में बहुत ऊपर लिखूँ।
मुट्ठियों में कैद रखना चाहते जो देश को
उनकी जिद है उनको मैं देश का रहबर लिखूँ।
१५ जुलाई २०१३ |