अनुभूति में
वीरेन्द्र कुँवर
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
पत्थरों को फूल लिक्खूँ
ये माना बिन खुशामद
वहाँ अधिकार की बातों की चर्चा
हाथ से
मुंसिफ के |
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ये माना बिन
खुशामद
ये माना बिन खुशामद आज कुछ पाया
नहीं जाता
किसी का पाँव लेकिन हमसे सहलाया नहीं जाता।
भले दुनिया उतारे आरती उसकी मगर मुझसे
किसी नामोहरम को हार पहनाया नहीं जाता।
अभावों में भले गुजरी है मेरी जिंदगी लेकिन
सवाली बन के मुझसे हाथ फैलाया नहीं जाता।
गिरेबाँ चाक था जिसका मगर जिंदा थी खुद्दारी
हमारे जेहन से उस शख्स का साया नहीं जाता।
कभी तो सामना करिए समस्या की सचाई से
हमेशा ख्वाब से दिल को तो बहलाया नहीं जाता।
१५ जुलाई २०१३ |