अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में भास्कर चौधरी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इन दिनों
ईमानदार थे पिता
तीन छोटी कविताएँ
पिता का सफर

 

 

 

ईमानदार थे पिता

क्यों
ईमानदार थे पिता
क्यों इतने भोले
कि दुनिया सीधे हैं सीधे है कहकर
पीठ पीछे करती रही उनकी बुराई
वे नहीं कर सके कोई ऊपरी कमाई
उन्होनें घूस नहीे दिया
घूस लिया नहीं कभी

हम कोस रहे हैं पिता को
अब जब हम स्वयं पिता हैं
चार
सड़सठ के पिता
आते हैं और
मेरी सात साल की बेटी के साथ
खेलने जुट जाते हैं

दो दिन ठहरते हैं वे तो
उनकी महक और
बेटी की हँसी से घर भर जाता है

पिता आज सड़सठ के हैं
दस जून को अड़सठ के हो जाएंगे
फिर उनहत्तरए, सत्तर...

डर लगता है

७ अप्रैल २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter