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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
ढलती साँझ
निहितार्थ समझने होंगे
मुट्ठी की ताकत
वे लोग
सब खामोश हैं

गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

ढलती साँझ

रात आकुल है
इस ढलती साँझ को
आँचल में समेट लेने को

दरवाजे पर
दिए की टिमटिमाती रौशनी में
दो काँपते हाथ
खटिया के पैताने की
निवाड़ कसने की कोशिश में हैं
लेकिन चूलें
हल्की आवाज के साथ
कसमसाकर रह जाती हैं

घर के आँगन से प्रतिध्वनित हो रही है
सन्नाटे की अनुगूँज

चूल्हे में
बेमन से सुलग रही
लकड़ी
देहरी पर किसी बूढ़े गले के
खखारने की आवाज सुन
थोड़ा सरक जाती है
चूल्हे में, आग कुछ और
तेज हो जाती है
चूल्हा अनमना सा लादे है
बुदबुदाती बटुली का बोझ

दीवार
धुएँ से स्याह होती जा रही है
रात गहरा रही है

अकेलेपन से ऊबकर सन्नाटा
टाँगें फैला पसर गया है
घर के भीतर

१ दिसंबर २०१६

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