अनुभूति में
दिलीप लोकरे की रचनाएँ-
छंदमुक्त
में-
आदमी हूँ मैं
कहाँ गई वो माँ
प्रकृति
यादों के
गलियारे
समझदार
बच्चा |
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आदमी हूँ मैं
हाल ही में बनाये बड़े बँगले से
माँ की ही तरह
चिड़िया को भी
बाहर निकाल दिया मैंने,
माँ
जिसने मुझे जीवन दिया
अपना दूध पिलाया
चलना सिखाया
हर मुश्किल में साथ निभाया,
और चिड़िया जिसने बिना थके
बिना हारे
मेहनत से अपना नीड़ बनाना सिखाया
पर क्या करूँ चिड़िया नहीं
आदमी हूँ मै
१८ मार्च
२०१३
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