अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में दिनकर कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
इस आत्महत्या के युग में
ऋण का मेला
भूमंडलीकरण
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
वायलिन
विदर्भ
सारा देश रियल इस्टेट

  ऋण का मेला

ऋण के मेले में सजाई जाती हैं आकाँक्षाएँ
पतंग की तरह उड़ाए जाते हैं सपने
मोहक मुस्कराहट का जाल फैलाया जाता है
और मध्यवर्ग का आदमी
हँसते-हँसते शिकार बन जाता है

ऋण के मेले में हर चीज़ के लिए
आसानी से मिल जाता है पैसा
गृहिणी की ज़रूरत हो या बच्चों की हसरत हो
मेले में सारी इच्छाएँ आसान शर्तों पर
साकार हो जाती हैं

विज्ञापनों का चारा फेंककर मेले में
आकर्षित किया जाता है ऐसे लोगों को
जो ज़रूरतें तो किसी तरह पूरी कर लेते हैं
मगर स्थगित रखते हैं इच्छाओं को
मेले में आकर ऐसे लोग हँसते-हँसते ही
बंधक बना देते हैं अपने भविष्य को.

१६ दिसंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter