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अनुभूति में दिनकर कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
इस आत्महत्या के युग में
ऋण का मेला
भूमंडलीकरण
मायावी चैनलों से चौबीस घंटे
वायलिन
विदर्भ
सारा देश रियल इस्टेट

  वायलिन

एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
साथ ही बहकर जाती है उदासी
कुंठाएँ
पाने और खोने की पीड़ा

वायलिन वादक की आँखों से टपकती संवेदना
हौले से
अपनी आँखों में समा लेता हूँ
मेरे रोम-रोम में होती है
अजीब-सी सिहरन

यह कौन सी धुन है
जो मेरी आँखों से आँसू की बरसात
करवा देती है
मेरे भीतर घुमड़ती हुई घुटन
बर्फ़ की तरह पिघलने लगती है

मुझे याद है ऎसी ही किसी तान को
सुनते हुए
कभी भीड़ के बीच चुपचाप
रोता रहा था
कभी ऎसी ही तान को सुनकर
रात भर गुमसुम सा
जागता रहा था

मैं भूल जाता हूँ विषाद की खरोंचों को
दुनियादारी की तमाम विकृतियों को
एक लहर बहाकर ले जाती है
मुझे
मेरे भीतर समाता जाता है उल्लास

१६ दिसंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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