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गाँव में अलाव– इमारात की सर्दी
नया साल– नया साल मुबारक

 

हम एक हैं एक ही रहेंगे

भाषाएँ हों चाहे जितनी बाधाएँ आए चाहे कितनी
देश के सवाल पर हम एक हैं एक ही रहेंगे

आज हमारे मानस ने क्यों जंग पकड़ा है
जिधर भी देखो उधर ही लफड़ा है
हमें चाहिए यह प्रांत और हमें चाहिए वह इलाका
क्यों करते हो टुकड़े मेरे चीख-चीख कहे भारतमाता
राज्य के सवाल पर प्रांत के सवाल पर -
हम क्यों नहीं कहते
हम एक हैं एक ही रहेंगे

ऊँच नीच का भेदभाव क्यों रग-रग में समाया है
सोच ज़रा इंसां तू ऊपर से क्या संग लेके आया है
ऊपर वाले ने बनाया है सबको एक मिट्टी से एक जैसा
शरीर एक-सा रक्त एक-सा फिर एक दूजे में भेद ये कैसा
जातिवाद के सवाल पर ऊँच-नीच के सवाल पर -
हम क्यों नहीं कहते
हम एक हैं एक ही रहेंगे

आतंकवाद के साये ने कब से हमको घेरा है
अंधकार से बाहर निकलो अपना लो जो सवेरा है
कभी ना सोचा था ये दिन दिखलाएगा बेकारी का दानव
एक दूजे के रक्त का प्यासा हो जाएगा आज का मानव
भाईचारे के सवाल पर सहृदयता के सवाल पर-
हम क्यों नहीं कहते
हम एक हैं एक ही रहेंगे

गंदगी का बोलबाला चहुँ ओर
थूकना समझते जन्मसिद्ध अधिकार
निकट भविष्य में शायद हमको देना पड़े
साँसों पर भी अधिभार
धरती को गंदा कर चले हम अंतरिक्ष की ओर
क्यों न ध्यान दें पर्यावरण पे सफ़ाई पर करें ग़ौर
प्रदूषण के सवाल पर वातावरण के सवाल पर
हम क्यों नहीं कहते
हम एक हैं एक ही रहेंगे

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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