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अनुभूति में जया नरगिस की रचनाएँ—

कविताओं में-
कामयाबी का नग़मा
गीत मेरे
तमाशा
भाषा स्पर्श की
शगल

अंजुमन में-
आँगन की धूप
एक सच
खुशियाँ घायल
पतझड़ में बहारों की महक
शरद का चाँद
हैं अंधेरे

संकलन में-
धूप के पाँव-एक गठरी आग

तमाशा

तमाशा जारी है
सांप नेवले को
डस नहीं पाता
नेवला हर बार छोड़ देता है
सांप को ज़िंदा
और फिर
मदारी की झोली में
बरसते हैं सिक्के।
चौराहे, गलियाँ, गाँव, शहर
बदलते जाते हैं
डमरू बजता रहता है
भीड़ जुटती रहती है
तमाशा चलता रहता है
सब जानते हैं
सांप नहीं डसेगा नेवले को
नेवला मार नहीं पाएगा सांप
फिर भी
तमाशबीनों के हाथ
फेंकते रहेंगे सिक्के
अपनी ही मर्ज़ी के खिलाफ़।

१ दिसंबर २००५

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