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जलते लफ्ज़

पैनी सी एक ख़ामोशी को चीरने
बहुत से लफ्ज़ इकठ्ठा हुए हैं आज
किसी तरतीब के चलते एक कतार में
खड़े हैं ये सारे लफ्ज़
अमावस की रात है, और
ख़ामोशी की मिकदार( गहराई)
बढ़ रही है रफ्ता-रफ्ता
कोफ़्त खाकर, लफ्ज़ भी
जल पड़े हैं धु-धु करके
इतनी रोशनी है कि अब अमावस
अमावस सी नहीं लगती
ख़ामोशी को धुआँ करती
जलते अल्फ़ाज़ों को साथ लेकर
आज दिवाली मिलने आई है मुझे

१५ फरवरी २०१७

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