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अनुभूति में करुणेश किशन की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
जनाब बचपन से देखता हूँ
दीवार की खूबसूरती
धुंध
प्रियतमा चाय
मेरी अँगूठी का नगीना

  मेरी अँगूठी का नगीना

अप्सरा है अँगूठी के
नगीने के रूप में
पारस मणि के समान

पर इससे लोहे को
सोना नहीं, हीरा
हाँ हीरा बनालो

समय धारा से तेज
शीतल छल-छल
गंगा रूपी पावन

रूप निहारे जिसका सावन
बसंत पाँव पखारे
ग्रीष्म और जाड़े सेज सजाएँ
लागे मन को भावन

मेरा तन है, मेरा मन है
जीवन मेरा, प्राण मेरा
शांत निश्चल इस धरा पर
एक छत्र अधिकार तेरा

देखूँ तुझको
जल किल्लोल करते
आकाश गंगा के
मोतियों पर

और तुझे चाह लूँ
दो पल अँगूठी से
निकलने को

रुक जाऊँ, ठहर जाऊँ
डर जाऊँ
कहीं झटक न जाए
नगीना हाथों से

मैं छूट न जाऊँ
पीछे कहीं
नगीने की तलाश में

कोई और अँगूठी
न ढल जाए
उस नगीने के साज में

५ मई २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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