अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कुहेली भट्टाचार्य की रचनाएँ

कविताओं में-
इंतज़ार में रहेगा सवेरा
एक बीज
घास के वक्ष से
तुम भी ठहरो

रोशनी होगी
वादा
सौंधी सुगंध

 

इंतज़ार में रहेगा सवेरा

ओस से भीगे होंठों को
भीगे ही रहने दो
धूप का पहला चुंब
तुम्हारा ही रहेगा।
सूरज की पहली किरण से
तुम क्यों डर गए थे?
वह तो प्यार था!
आज का सन्नाटा तुम्हें छू जाए
तो गम न करना
कल तुम्हारा ही है
सिर्फ तुम्हारा!
बस इंतज़ार करना!
क्यों भूल जाते हो
उन मौसमों को
जब दीवारो में दरार न थीं
आँखों में काजल और होंठों पर लाली थी
गर्मियों में पुरवाई चलती,
जाड़ों में धूप खिलती थी,
आज ओस में भीगे होंठों को
भीगे ही रहने दो
अगले मौसम में
शाखें हिलेंगी, फूल खिलेंगे
मुरझाएँगी नहीं कलियाँ
थरथराहट दिल में लिए
इंतज़ार में रहेगा सवेरा।

9 मई 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter