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नई रचनाओं में-
औरत
किसी नगर के भग्नावशेषों मे
तुम्हारा होना या न होना
मेरे सामने
मैंने तुम्हें

छंदमुक्त में-
बस्तर-एक
बस्तर-दो
तुम्हारा पत्र
यादें

  बस्तर -एक

झुलसी इच्छाएँ
स्वप्नों का लेप कब तक सम्हाले?
तोड़ गया कोई
संवादों के सम्बन्ध भी
अनुभव के हाथों में महुए के गंध से
उभरे फफोले; फूट गए
बनिये की तराजू में आकर
तेंदू के पत्तों में
धूप की गर्मी
धुआँ-धुआँ कर गई सरकारी दावों को
कंधों की ऊँचाई हो गई समतल
बाँधों को बाँध कर
पपीहा लगाता रहा लगातार प्यास की टेर
छातियों का ढूध सूख कर थैलियों में हो गया बंद,
रोता है फगुना चुल्लू भर पानी को
खेलती है फुगड़ी दुखिया की नोनी (छोरी)
करना है कल आग का शृंगार उसे,
दहेज की देवी माँगती है पुजाई
और उतारेगा भूत तब
बैगा पीकर उतारा
तमाशे का डमरू बज गया कहीं
टोपियाँ बदलने का खेल देखेगी दुनिया
कुर्सी में टाँगे होती है कितनी-
जानता नहीं बुधवा
उसकी तो दुनिया सिमट आती है तब,
जब निकलती है तिरिया
जूड़े में खोंसे गेंदे का फूल
तेंदू का पत्ता महुए का फूल
तुम्बे में सल्फी, चावल का पेज
थक गया सूरज चढ़ते-उतरते,
बदली न आस्थाएँ
बदली न आवश्यकताएँ
पीटते रहो तुम ढिंढोरा प्रगति का

२१ दिसंबर २००९

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