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तुम्हारा पत्र
यादें

  तुम्हारा पत्र

आज सुबह से
हाँफती हुई
कन्धा पकड़कर जगा गईं हवाएँ
कुछ घटना था
और
फिर तुम्हारा पत्र मिला .
मूहर लगी थी खुशियों की
पता लिखा था जीवन का
सहज मुस्कानों की तारीख पड़ी थी
माँ के आँचल-सा
पृष्ठ बड़ा था
चमकीली राखी जैसे
सुन्दर-सुन्दर शब्द लिखे थे
स्वप्नीली आँखों-सी स्याही
पढ़ते-पढ़ते
चिपक गया इन्द्रधनुष
गूँज उठा कानों में
झरनों का स्वर
समय से सोना
समय से उठना
समय से खाना
नियमित रहना
अपने होने का अर्थ मिला
सब कुछ था
पर तुम न थीं
आज तुम्हारा पत्र मिला

२१ दिसंबर २००९

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