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किसी नगर के भग्नावशेषों मे
तुम्हारा होना या न होना
मेरे सामने
मैंने तुम्हें

छंदमुक्त में-
बस्तर-एक
बस्तर-दो
तुम्हारा पत्र
यादें

 

तुम्हारा होना या न होना

परिदृश्य में
तुम्हारा होना या न होना
मायने नहीं रखता

सारी संवेदनाओं को
दरकिनार करते हुए
मैं अब भी महसूस करता हूँ
तुम्हारी ऊष्मा
तुम्हारी छुअन
अब भी मेरे सामने है
मुझमें कुछ तलाशती
तुम्हारी पनीली आँखें
तुम्हारी वह अंतिम मुस्कराहट
और
उसके पीछे छिपी पीड़ा
जिससे तुम मुक्त हो चुके हो
नहीं भूल सकता कभी

नही भूल सकता
फिर आना ,आओगे न
कह कर तुम्हारा चला जाना

२४ दिसंबर २०१२

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